माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आज करेंगे पुनर्विकसित पांडुलिपि मिशन का शुभारंभ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आज राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) के पुनरावृत्त और विस्तारित स्वरूप का औपचारिक शुभारंभ करेंगे। इस महत्त्वाकांक्षी पहल की घोषणा केंद्रीय बजट 2025 में की गई थी, जिसके अंतर्गत मिशन के बजटीय आवंटन को 3.5 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 60 करोड़ रुपये कर दिया गया है।


इस संशोधित मिशन का उद्देश्य भारत की प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण, डिजिटलीकरण और व्यापक उपयोग को सुनिश्चित करना है। ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसी संस्थाओं में मौजूद दुर्लभ कागज़ी पांडुलिपियाँ अब राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की सहायता से डिजिटल स्वरूप में संरक्षित की जाएंगी।

इस पहल के अंतर्गत ‘ज्ञान भारतम मिशन’ की भी शुरुआत होगी, जिसके तहत देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, पुस्तकालयों, संग्रहालयों और निजी संग्रहों में उपलब्ध एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण किया जाएगा। मिशन को एक स्वायत्त निकाय के रूप में पुनर्गठित किया जा रहा है, जिससे इसकी कार्यक्षमता और स्वतंत्रता में वृद्धि होगी।

सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय संस्कृति सचिव की अध्यक्षता में नए संगठन की रूपरेखा को अंतिम रूप देने के लिए कई उच्च-स्तरीय बैठकें आयोजित की गई हैं। द हिंदू ने इससे पहले रिपोर्ट किया था कि संस्कृति मंत्रालय एनएमएम को “पुनर्जीवित और पुनः प्रारंभ” करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। अक्टूबर 2024 में इस संदर्भ में संस्कृति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक बैठक भी आयोजित हुई थी, जिसमें भाषाविदों, शोधकर्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों ने भाग लिया।

वर्तमान में एनएमएम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अधीन कार्यरत है। इसकी स्थापना 2003 में हुई थी, परंतु यह अपेक्षित स्तर तक प्रभावी नहीं हो सका। अब तक एनएमएम द्वारा 52 लाख पांडुलिपियों का मेटाडेटा तैयार किया जा चुका है, जबकि तीन लाख पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में संरक्षित किया गया है। हालांकि, इनमें से मात्र एक-तिहाई ही ऑनलाइन उपलब्ध हैं।

एनएमएम के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, वर्तमान में केवल 70,000 पांडुलिपियाँ ही सार्वजनिक रूप से देखने के लिए उपलब्ध हैं, जिसका प्रमुख कारण स्पष्ट ‘अभिगम नीति’ (Access Policy) की अनुपस्थिति है। चूँकि लगभग 80% पांडुलिपियाँ निजी स्वामित्व में हैं, इसलिए उन्हें साझा करने हेतु कोई स्पष्ट प्रोत्साहन तंत्र मौजूद नहीं है।
मिशन ने अब तक नौ करोड़ से अधिक फोलियो का निवारक और उपचारात्मक संरक्षण भी किया है, जो भारत की अमूल्य बौद्धिक धरोहर को सहेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

-आद्रिता मुखर्जी

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