हिंदवी स्वराज दिवस: सनातन का उदय

हिंदवी स्वराज दिवस: सनातन का उदय

1645 ईस्वी की बात है। पुणे के निकट रायगढ़ किले पर एक किशोर बालक गहरी ध्यानमग्न अवस्था में अपने गुरु के समक्ष बैठा था। मात्र 15 वर्ष की आयु में छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन का संकल्प लिया – “हिंदवी स्वराज्य” की स्थापना। यह कोई सामान्य राजनीतिक घोषणा नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति का उदय था।

शिवाजी महाराज का यह स्वराज्य विचार विदेशी मुग़ल और आदिलशाही जैसे इस्लामी शासकों के अत्याचारों के विरुद्ध एक स्वाभिमानी उत्तर था। उनका सपना था – एक ऐसा राष्ट्र जहाँ जनता स्वतंत्र हो, धर्म और संस्कृति को खुलकर जी सके, और प्रशासन धर्म, न्याय और लोककल्याण पर आधारित हो।

उनके गुरु, समर्थ रामदास, ने उन्हें आत्मबल और धर्मपरायणता का पाठ पढ़ाया। शिवाजी ने बाल्यकाल से ही रामायण और महाभारत से प्रेरणा ली और प्रजावत्सल, वीर, और धर्मरक्षक राजा बनने का मार्ग चुना।

शिवाजी महाराज ने 1664 में सूरत जैसे समृद्ध मुग़ल बंदरगाह पर आक्रमण कर विदेशी सत्ता की कमर तोड़ी। 1674 में रायगढ़ पर उनके राज्याभिषेक के साथ ही हिंदवी स्वराज का औपचारिक आरंभ हुआ। उन्होंने मराठी भाषा को प्रशासन में स्थान दिया, गो-हत्या पर रोक लगाई, मंदिरों की रक्षा की, और महिलाओं की गरिमा को सर्वोच्च महत्व दिया।

हिंदवी स्वराज दिवस न केवल शिवाजी महाराज की वीरता की गाथा है, बल्कि यह सनातन संस्कृति के पुनरुद्धार की भी घोषणा है। यह हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र का उत्थान तब होता है जब शासन आत्मा, संस्कृति और न्याय से जुड़ा हो।

आज यह दिवस केवल ऐतिहासिक गर्व का दिन नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा है – कि सनातन धर्म और आत्मगौरव के साथ खड़ा भारत ही सच्चा स्वराज है।

– अभिषेक तिवारी, पत्रकार