बिहार का चुनावी आगाज शुरू हो चुका है और इसी कड़ी में चुनाव आयोग के घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान करने के निर्णय पर विपक्ष ने राजनीतिक सरगर्मी की हवा को तेज कर दिया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने एक महीने के अंदर बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं की पहचान करने पर सवाल उठाए हैं। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे पिछले दरवाजे से ‘एनआरसी’ लागू करने की कोशिश बताया है। जबकि इसको दरकिनार कर चुनाव आयोग ने घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान करने का निर्णय कर लिया है। इसकी शुरुआत बिहार से होने के साथ ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। दोनों ही दलों ने मतदाताओं की पहचान की जांच करने के इस अभियान का विरोध करने की मंशा दिखाई है, लेकिन राजनीति और कानून के विशेषज्ञ मानते हैं कि मतदाताओं की पहचान करने का विरोध, तकनीकी तौर पर संभव नहीं होगा क्योंकि चुनाव आयोग को इसकी कानूनी शक्ति प्राप्त है।

मतदाताओं की पहचान करने का जमीनी असर किस तरह दिखाई पड़ सकता है, इसका सबसे पहला परिणाम बिहार से ही आ सकता है जहां इसी वर्ष के अंत तक चुनाव होने हैं। झारखंड की तरह बिहार के सीमावर्ती इलाकों में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने और उनके मतदाता बन जाने की खबरें आती रही हैं। यदि मतदाताओं की चेकिंग के दौरान एक वर्ग विशेष के मतदाताओं के वोट कटते हैं तो इस पर बवाल मचना तय है। असम में इसका असर दिखाई पड़ चुका है।
प. बंगाल में भी अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा लंबे समय से प. बंगाल में अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठाती रही है। मतदाताओं के घर-घर जाकर भौतिक रूप से सत्यापन करने से प. बंगाल में भी फर्जी मतदाताओं की पहचान होने और उनके मतदाता सूची से बाहर किए जाने की संभावना है। भाजपा यही आरोप लगाती रही है कि तृणमूल कांग्रेस इन फर्जी मतदाताओं के सहारे कई विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी जीत हासिल करती रही है। भाजपा टीएमसी पर इस मुद्दे के जरिए भी मुसलमानों का तुष्टीकरण करने के आरोप लगा रही है, लेकिन ममता बनर्जी ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं, इस पर राजनीतिक बवाल मचना भी तय है।
असम में गिर चुकी बांग्लादेशी घुसपैठियों पर गाज
दरअसल, असम में राज्य सरकार ने 30 हजार से अधिक फर्जी मतदाताओं की पहचान कर ली है। राज्य सरकार ने घोषित तौर पर उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठिया करार दिया है। अब हेमंत बिस्व सरमा सरकार उन्हें बांग्लादेश भेजने की तैयारी कर रही है। लेकिन आरोप है कि सरकार द्वारा इन घुसपैठियों के पकड़े जाने के पहले ही वे गायब हो गए हैं। आशंका इस बात की भी है कि वे पड़ोसी राज्यों बिहार, झारखंड, त्रिपुरा से लेकर पश्चिम बंगाल तक भी चले गए हो सकते हैं।
पश्चिम बंगाल में भी खड़ी हो सकती है मुसीबत
आरोप है कि वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस की सरकार के शासन में पिछले 25-30 साल के दौरान बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत की मतदाता सूची में भी शामिल हो चुके हैं। वे यहां के मतदान में वोट भी देते हैं और सरकार बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। आरोप यह भी है कि ऐसे हजारों घुसपैठिये केवल वोट देने के लिए बिहार-पश्चिम बंगाल आते हैं और मतदान करने के बाद वापस बांग्लादेश चले जाते हैं। घर-घर मतदाताओं की पहचान होने की प्रक्रिया में ऐसे मतदाताओं की पोल खुल सकती है और वे हमेशा के लिए मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। इससे नई मतदाता सूची से चुनाव होने पर राज्यों के चुनाव परिणामों में बड़ी फेरबदल भी हो सकती है।