डीयू के 70% से अधिक यूजी छात्र एफवाईयूपी के तहत चौथे वर्ष में जारी रखने को तैयार; बाहर निकलने की अंतिम तिथि 1 अगस्त तक खुली

नई दिल्ली, 25 जुलाई 2025 — राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत लागू किए गए चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (FYUP) को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के छात्रों से जबरदस्त समर्थन मिला है। पात्र स्नातक छात्रों में से 70% से अधिक ने वैकल्पिक चौथे वर्ष में पढ़ाई जारी रखने का विकल्प चुना है। विश्वविद्यालय का ऑप्ट-आउट पोर्टल 1 अगस्त तक खुला रहेगा, जो नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से ठीक पहले है।

डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने 24 जुलाई तक के आंकड़े साझा करते हुए बताया कि कुल लगभग 72,000 छात्रों में से 20,221 ने चौथे वर्ष से बाहर निकलने का विकल्प चुना है। इसका अर्थ यह है कि 50,000 से अधिक छात्रों ने चौथे वर्ष में बने रहने का निर्णय लिया है, जो लगभग 72% की सहभागिता दर को दर्शाता है।

कॉलेजवार स्थिति

डीयू के अकादमिक मामलों के डीन द्वारा साझा किए गए प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, बाहरी क्षेत्र के कॉलेजों में चौथे वर्ष की भागीदारी अपेक्षाकृत अधिक रही है, जबकि प्रमुख कॉलेजों में यह दर कुछ कम देखी गई है। माना जा रहा है कि शीर्ष कॉलेजों के छात्र पारंपरिक परास्नातक मार्ग को प्राथमिकता दे रहे हैं।

  • शहीद भगत सिंह कॉलेज में लगभग 50–52% छात्रों ने चौथे वर्ष में पंजीकरण कराया है।
  • लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वुमन में 60–70% की भागीदारी दर्ज की गई है, जिसमें साइकोलॉजी (ऑनर्स) कोर्स में यह दर 80% तक पहुंच गई है।
  • किरोरी मल कॉलेज और रामजस कॉलेज में औसतन 45% छात्र ही आगे पढ़ाई जारी रख रहे हैं, हालांकि कुछ विभाग जैसे रसायन विज्ञान और अर्थशास्त्र में अधिक रुचि देखी गई है।

चौथे वर्ष में क्या मिलेगा

एफवाईयूपी(FYUP) के मल्टीपल एंट्री–एग्जिट स्कीम (MEES) के तहत छात्र तीन वर्षों के बाद सामान्य ऑनर्स डिग्री लेकर कार्यक्रम से बाहर निकल सकते हैं, या चौथे वर्ष में जारी रखकर “ऑनर्स विद रिसर्च” डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। यह अंतिम वर्ष अनुसंधान, नवाचार, उद्यमिता और कौशल-आधारित शिक्षण पर केंद्रित है।

कुलपति सिंह ने इस चौथे वर्ष को एक “गेम चेंजर” करार दिया है और कहा कि यह दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक शिक्षा के अनुभव को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखता है।

चिंताएं और तैयारियाँ

हालांकि छात्रों की भागीदारी उत्साहजनक रही है, लेकिन कई शिक्षकों और शैक्षणिक संगठनों ने कार्यक्रम की प्रभावशीलता को लेकर सवाल उठाए हैं। चिंताओं में पाठ्यक्रम की अस्पष्टता, शिक्षकों पर बढ़ता बोझ, संसाधनों की कमी और संभावित ड्रॉपआउट दरों में वृद्धि शामिल हैं।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन चिंताओं का संज्ञान लेते हुए कहा है कि सभी आवश्यक तैयारियाँ की जा रही हैं। बुनियादी ढांचे की खामियों को दूर किया जा रहा है और अध्यापन स्टाफ की पूर्ति की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।

आगे की राह

1 अगस्त को ऑप्ट-आउट विकल्प बंद होने के साथ ही, डीयू के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि इतने बड़े पैमाने पर चौथे वर्ष की शिक्षा को सफलतापूर्वक कैसे संचालित किया जाए। आने वाले सप्ताहों में यह स्पष्ट होगा कि विभाग शैक्षणिक और प्रशासनिक रूप से कितने तैयार हैं।

FYUP की सफलता अब न केवल छात्रों के बने रहने पर निर्भर करेगी, बल्कि इस बात पर भी कि विश्वविद्यालय गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने और इस बड़े बदलाव को प्रभावी ढंग से लागू करने में कितना सफल हो पाता है।

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