निर्वाचन आयोग ने आज, 10 जुलाई सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। यह टिप्पणी बिहार में मतदाता सूची की “विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR)” को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दी गई।
याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर आपत्ति जताई कि निर्वाचन आयोग ने आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को उन ग्यारह दस्तावेजों की सूची से बाहर कर दिया है, जिन्हें आयोग ने उन मतदाताओं की नागरिकता सिद्ध करने के लिए स्वीकार्य माना है, जो 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे।
उन याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन का कहना है कि जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत आधार कार्ड एक स्वीकार्य दस्तावेज है, लेकिन बिहार SIR के लिए निर्वाचन आयोग इसे स्वीकार्य नहीं मान सकता।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की बेंच ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि आधार को स्वीकार क्यों नहीं किया गया।
इसके जवाब में, निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा, “आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता।”
इस पर न्यायमूर्ति धूलिया ने साझा किया, “लेकिन नागरिकता का निर्धारण निर्वाचन आयोग की नहीं, गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी है।”
इस पर आयोग के सलाहकार ने यह भी कहा, “अनुच्छेद 326 के तहत हमें शक्तियां प्राप्त हैं।” इस पर बेंच ने यह टिप्पणी की कि अगर ऐसा था तो आयोग को यह प्रक्रिया पहले ही शुरू कर देनी चाहिए थी।
न्यायमूर्ति बागची ने आगे कहा, “मान लीजिए कि आपका यह निर्णय अगर 2025 की मतदाता सूची में पहले से शामिल किसी व्यक्ति को बाहर कर देता है, तो उसे इस निर्णय के खिलाफ अपील करनी होगी और पूरी कानूनी प्रक्रिया में से होकर गुजरना पड़ेगा, जिससे वह आने वाले चुनावों में अपने मतदान के अधिकार से वंचित हो सकता है। मतदाता सूची को गहन पुनरीक्षण के माध्यम से शुद्ध करना आवश्यक है ताकि गैर-नागरिक सूची में मौजूद न रहें, लेकिन अगर यह प्रक्रिया प्रस्तावित चुनाव से कुछ ही महीने पहले की जाती है…”
सुनवाई अभी जारी है।
सांसद महुआ मोइत्रा (ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस), मनोज कुमार झा (राष्ट्रीय जनता दल) सहित प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं—केसी वेणुगोपाल (इंडियन नेशनल कांग्रेस), सुप्रिया सुले (नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी – शरद पवार), डी. राजा (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया), हरिंदर मलिक (समाजवादी पार्टी), अरविंद सावंत (शिवसेना – उद्धव बालासाहेब ठाकरे), सरफराज अहमद (झारखंड मुक्ति मोर्चा), दीपंकर भट्टाचार्य (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) लिबरेशन), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम आदि—द्वारा यह याचिकाएं दायर की गई हैं।