यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी रुकवाने वाले ‘ग्रैंड मुफ़्ती ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर अबूबकर मुसलियार कौन हैं?: जानिए उनके बारे में

उनका आधिकारिक नाम शेख अबूबकर अहमद है जिनका ताल्लुख केरल से है, और निमिषा प्रिया का गृह राज्य भी है। वह भारत में सुन्नी इस्लाम के शीर्ष धर्मगुरुओं में से गिने जाते हैं।

94 वर्षीय मुस्लिम धर्मगुरु कांथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार — जिन्हें समुदाय में ‘ग्रैंड मुफ़्ती ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है — हूथी विद्रोहियों के कब्जे वाले यमन के राजधानी सना में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी रुकवाने के पीछे एक जाना माना चेहरा बनकर उभरे हैं।

अबूबकर मुसलियार जिनका आधिकारिक नाम शेख अबूबकर अहमद है, केरल के कोझीकोड के निवासी हैं। निमिषा प्रिया भी केरल की रहने वाली हैं और वे 37 वर्ष की हैं। मुसलियार भारत और दक्षिण एशिया में सुन्नी मुस्लिम समुदाय के एक प्रमुख नेता भी हैं।

हालांकि ‘ग्रैंड मुफ़्ती ऑफ इंडिया’ की उपाधि भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है, फिर भी उन्हें व्यापक रूप से इस पद के रूप में जाना जाता है। वे इस उपाधि को धारण करने वाले दसवें व्यक्ति हैं। इस्लाम और भारत में अन्य “ग्रैंड मुफ़्ती” भी इस तालिका में शामिल हैं, जो प्रमुख मस्जिदों से जुड़े रहते हैं। ‘मुफ़्ती’ शब्द का अर्थ है— इस्लामी कानून का विशेषज्ञ।

कोझीकोड निवासी और ‘नॉलेज सिटी’ के चेयरमैन
कोझीकोड में जन्मे मुसलियार राज्य और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर विद्वानों की परिषदों में एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वे खाड़ी देशों और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों समेत विदेशों में भी इस्लामी प्रवचन और व्याख्यान के लिए अक्सर बुलाए जाते हैं।
वे कोझीकोड में स्थित एक निजी एकीकृत टाउनशिप ‘मार्कज़ नॉलेज सिटी’ परियोजना के चेयरमैन भी हैं, जिसमें मेडिकल और लॉ कॉलेज के साथ एक सांस्कृतिक केंद्र भी शामिल है।

मुफ़्ती पूर्व में अपने कुछ बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में रहे हैं— जैसे कि जब उन्होंने 2019-20 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ सड़कों पर मौजूद महिलाओं की भागीदारी को लेकर आपत्ति जताई थी। हालांकि, उन्होंने CAA का विरोध स्वयं दर्ज कराया था।

निमिषा प्रिया के लिए प्रयास
निमिषा प्रिया के मामले में उन्होंने यमन के धार्मिक अधिकारियों से बातचीत की, जो तालाल अब्दो महदी नामक उस यमनी नागरिक के परिवार के संपर्क में हैं और 2017 में उनके हत्या का आरोप प्रिया पर लगा था।

एक शरिया कानून के विद्वान के रूप में उन्होंने इस्लाम में “दया के अधिकार” या “खूनबही” (blood money) की अवधारणा का हवाला दिया, जिसमें पीड़ित का परिवार धनराशि लेकर क्षमा कर सकता है।

उन्होंने एक समाचार एजेंसी से साझा किया:
“इस्लाम में एक और कानून है कि यदि किसी को मौत की सजा दी जाती है, तो पीड़ित का परिवार उसे क्षमा कर सकता है। मुझे नहीं पता कि यह परिवार कौन है, लेकिन मैंने दूर बैठे ही यमन के ज़िम्मेदार इस्लामी विद्वानों से संपर्क किया।”
उन्होंने आगे बताया: “मैंने उन्हें मामले की गंभीरता समझाई। इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो मानवता को अत्यंत महत्व देता है।”

इसके अलावा, भारत सरकार और नागरिक समाज के कुछ समूह भी निमिषा प्रिया की फांसी रुकवाने की कोशिश में लगातार जुटे हैं जबकि उनकी मां यमन में पीड़ित परिवार से बातचीत के लिए गई हुई हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब उस धनराशि पर बातचीत दोबारा शुरू हो चुकी है जो बतौर खूनबही दी जा सकती है।

राजनयिक अड़चनें और हस्तक्षेप
यह मामला इसलिए और भी ज़्यादा जटिल हो गया है क्योंकि यमन के हूथी विद्रोहियों से भारत की कोई औपचारिक कूटनीतिक बातचीत नहीं है, जिनका नियंत्रण सना समेत यमन के बड़े हिस्सों पर भी है। भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट को भी यह जानकारी दे चुकी थी।

मंगलवार को मुसलियार ने बताया:
“मेरे आदेश पर यमन के विद्वान एकत्र हुए, चर्चा की और कहा कि वे हस्तक्षेप करेंगे। उन्होंने हमें औपचारिक रूप से एक दस्तावेज भेजा है जिसमें कहा गया है कि फांसी की तारीख स्थगित कर दी गई है, जिससे बातचीत को समय मिलेगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने भारत सरकार को इसकी जानकारी दे दी है:
“मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र भेजा है।”

पृष्ठभूमि
जुलाई 2017 में निमिषा प्रिया को उनके व्यवसायिक साझेदार यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 2020 में यमनी अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, जिसे 2023 में हूथी प्रशासन की सुप्रीम जुडिशियल काउंसिल ने बरकरार रखा।

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