1. भारत के शत्रुतापूर्ण पड़ोसी: पश्चिम की चालें और चीन की चुनौती
भारत के विकास की राह केवल आंतरिक चुनौतियों से नहीं भरी है, बल्कि इसके चारों ओर एक रणनीतिक जाल भी बिछाया गया है, जिसमें पश्चिमी देश, पाकिस्तान और चीन अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
पाकिस्तान को दशकों से पश्चिमी देशों ने सामरिक, आर्थिक और सैन्य मदद देकर भारत के खिलाफ एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया है। आतंकवाद को शह देना, सीमा पर तनाव बनाए रखना और भारत को सुरक्षा संकट में उलझाए रखना यही पाकिस्तान की भूमिका रही है।
चीन, भारत को एशिया में अपनी क्षेत्रीय प्रभुता के लिए सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है। वह भारत को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से घेरने की नीति (String of Pearls, BRI, आदि) पर काम कर रहा है। डोकलाम, गलवान जैसी घटनाएँ सिर्फ सैन्य विवाद नहीं, बल्कि एक बड़ा संदेश हैं कि चीन भारत को बराबरी पर खड़ा देखना नहीं चाहता।
2. पश्चिमी देशों की भारत को लेकर असहजता और भय
भारत के उत्थान से पश्चिमी देश कई स्तरों पर असहज महसूस करते हैं:
सामरिक शक्ति संतुलन: भारत के उभरते सैन्य और अंतरिक्ष कार्यक्रम, परमाणु शक्ति और रणनीतिक गठजोड़ (जैसे क्वाड) से पश्चिम को भय है कि भारत एक स्वतंत्र ध्रुव बन सकता है।
आर्थिक प्रतिस्पर्धा: भारत का बढ़ता हुआ डिजिटल, स्टार्टअप और मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम अमेरिका और यूरोप की कंपनियों को सीधी चुनौती देता है।
नैरेटिव पर नियंत्रण: भारत की मजबूत आवाज़, UN, WTO और अन्य मंचों पर पश्चिम के ‘मानवाधिकार’ और ‘लोकतंत्र’ के दोहरे मापदंडों को चुनौती देती है।
3. भारत को रोकने के लिए पश्चिम ने अतीत में क्या किया?
वैश्विक संस्थानों से वंचित रखना: UNSC की स्थायी सीट, NSG सदस्यता भारत को इनसे अब तक बाहर रखने में पश्चिम की भूमिका स्पष्ट रही है।
मीडिया प्रोपेगैंडा और NGO दबाव: अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत को धार्मिक असहिष्णुता, जातिवाद और महिला उत्पीड़न का चेहरा बनाकर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उसकी साख और निवेश दोनों को क्षति पहुँचे।
टेक्नोलॉजी और पेटेंट हथियार: फार्मा, टेक, और कृषि क्षेत्रों में भारत की प्रगति को रोकने के लिए IP कानूनों और वैश्विक व्यापार शर्तों का दुरुपयोग किया गया।
4. भारत को विकासशील बनाए रखने के उनके फायदे
बाज़ार नियंत्रण: विकासशील भारत पश्चिमी उत्पादों का एक बड़ा उपभोक्ता बना रहता है।
सस्ती श्रमशक्ति: अगर भारत विकसित हो गया, तो पश्चिमी कंपनियाँ अपना उत्पादन भारत से बाहर ले जाने पर मजबूर हो जाएँगी।
नीतिगत दबाव बनाए रखना: एक निर्भर भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पश्चिम के एजेंडे के अनुरूप निर्णय लेता है जैसे पर्यावरण नीति, वैक्सीन पेटेंट, अफगानिस्तान आदि।
5. भारत को क्या करना चाहिए: जवाब और रणनीति
भारत को अपनी भविष्य की दिशा स्वयं तय करनी होगी, ना कि पश्चिम या पूर्व की इच्छा के अनुसार। इसके लिए निम्नलिखित कदम निर्णायक सिद्ध होंगे:
1. आत्मनिर्भर भारत को और सशक्त बनाना
मेड इन इंडिया, डिजिटलीकरण, स्वदेशी टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप्स को विश्व स्तर तक पहुँचाना।
रक्षा उत्पादन और अनुसंधान में आत्मनिर्भरता।
2. वैकल्पिक वैश्विक गठजोड़ बनाना
केवल पश्चिम पर निर्भर न रहकर ग्लोबल साउथ, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशियाई देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी।
3. वैश्विक नैरेटिव में अपनी आवाज़ बनाना
BBC या CNN नहीं, बल्कि भारत के अपने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को मज़बूत करना।
डिजिटल डिप्लोमेसी और सोशल मीडिया के ज़रिए दुनिया तक सही छवि पहुँचना।
4. सैन्य और साइबर शक्ति को मज़बूत करना
चीन और पाकिस्तान की हरकतों का जवाब देने के लिए सीमाओं के साथ-साथ साइबर, अंतरिक्ष और डाटा डिफेंस में भी अग्रणी बनना।
5. शिक्षा और नवाचार में निवेश
भारत को सस्ती श्रमशक्ति नहीं, उच्च शिक्षित और इनोवेटिव युवा शक्ति की पहचान बनानी होगी।
निष्कर्ष: भारत का भविष्य भारत के हाथों में है
भारत को एक विकासशील देश बनाए रखना केवल आर्थिक नीति का विषय नहीं, बल्कि एक वैश्विक राजनीतिक रणनीति है। पश्चिमी और कुछ एशियाई शक्तियाँ नहीं चाहतीं कि भारत वह मुकाम हासिल करे जहाँ वह बराबरी से, बल्कि नेतृत्व करते हुए खड़ा हो।
पर अब भारत 21वीं सदी का भारत है जो युद्ध भी जानता है और बुद्ध भी। आवश्यकता है केवल एकजुटता, दूरदृष्टि और आत्मसम्मान की।
यह समय है कि भारत वैश्विक मंच पर अपनी सोच, नीति और नेतृत्व से स्वयं की पहचान बनाए और किसी भी बाहरी दबाव के बजाय अपने मूल्यों और हितों के अनुसार आगे बढ़े।